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DJ नहीं, Traditional Instruments ही बचाएँगे Tribal Culture (Adivasi संस्कृति)

DJ नहीं, Traditional Instruments ही बचाएँगे Tribal Culture (Adivasi संस्कृति)


आज के आधुनिक समय में Adivasi Culture (आदिवासी संस्कृति) एक बड़े बदलाव से गुज़र रही है। जहाँ पहले ढोल, मंदर, नगेड़ा, नागाड़ा जैसे Traditional Instruments आदिवासी पहचान का केंद्र थे, वहीं अब उनकी जगह धीरे-धीरे DJ Sound System ले रहा है।


आज जहाँ DJ हो, वहाँ युवा नृत्य मंडलियाँ अपने आप इकट्ठा हो जाती हैं; और जहाँ DJ नहीं होता, वहाँ केवल बुज़ुर्ग ही Karam Raja के साथ पारंपरिक ढंग से झूमते दिखते हैं। यह दृश्य साफ़ बताता है कि झारखंड के छोटे-बड़े शहरों में सोच धीरे-धीरे बदल रही है।


Karam Parv आते ही सभी पूजा समितियों ने अपनी-अपनी Puja Committee बना ली है—टेंट बुक हो चुके हैं, DJ भी बुक हो चुका होगा। DJ के लिए एक दिन में हजारों रुपये खर्च कर दिए जाते हैं, लेकिन जब बात आती है Traditional Instruments (ढोल–मंदर–नगाड़ा) की—तो पूजा समितियाँ उसे खर्च नहीं, बोझ मान लेती हैं।


आदिवासी छात्रावासों को छोड़कर शायद ही कोई पूजा समिति Mandar, Nagara, Dhol खरीदती या बुक करती है।


अगर उतना ही पैसा जो DJ में जलाया जाता है, उसे Adivasi Traditional Instruments में लगाया जाए, तो हमारी Tribal Culture और Kurukh Tradition को एक नई ताक़त मिल सकती है।


हम क्यों किसी DJ के remix पर झूमें?

क्यों न हम अपनी Kurukh Songs, Adivasi Geet और Mandar–Nagara Beats पर झूमें?


आदिवासी संस्कृति की सबसे बड़ी खूबसूरती उसके खुद के गाने, खुद का नाच, और अपने वाद्ययंत्रों की धुन है—not in DJ lights and loud music.


अगर हमें अपनी Adivasi Culture को बचाना है, तो अपने त्योहारों और अखाड़ा में DJ नहीं,

बल्कि Traditional Adivasi Instruments के साथ उतरना होगा।

यही हमारी पहचान है, यही हमारी जड़ है।


Jai Johar — Jai Adivasi!

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